दत्त जयंती, जिसे दत्तात्रेय जयंती के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू त्योहार है जो भगवान दत्तात्रेय के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह शुभ दिन हिंदू कैलेंडर में मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा के दिन पड़ता है, जो आमतौर पर दिसंबर में होता है। भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और शिव की दिव्य त्रिमूर्ति का संयोजन माना जाता है।
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दत्त जयंती से जुड़ी कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय का जन्म ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनसूया से हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि दिव्य अवतार में तीन प्रमुख देवताओं के गुण होते हैं, जो विविधता में एकता का प्रतीक हैं। भगवान दत्तात्रेय को अक्सर तीन सिर, छह हाथों और चार कुत्तों से घिरे हुए चित्रित किया जाता है।
भक्त दत्त जयंती को बड़ी भक्ति और उत्साह के साथ मनाते हैं। उत्सव आमतौर पर भगवान दत्तात्रेय को समर्पित मंदिरों में अनुष्ठानिक प्रार्थनाओं और पूजा के साथ शुरू होता है। देवता की महिमा के विशेष भजन और कीर्तन गाए जाते हैं, जिससे आध्यात्मिक माहौल बनता है। कई अनुयायी आशीर्वाद मांगने और अपनी आत्मा को शुद्ध करने के साधन के रूप में इस दिन उपवास करते हैं और दान के कार्य भी करते हैं।
दत्त जयंती के आवश्यक पहलुओं में से एक है दत्तात्रेय चरित्र का पढ़ना और पाठ करना, एक पवित्र पाठ जो भगवान दत्तात्रेय के जीवन और शिक्षाओं का वर्णन करता है। भक्तों का मानना है कि देवता की कहानियों और ज्ञान में डूबने से उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य कृपा प्राप्त करने में मदद मिलती है।
दत्तात्रेय जयंती तिथि, समय ( Datta Jayanti Date, time)
दत्तात्रेय जयंती का महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार मार्गशीर्ष (अग्रहायण) महीने की पूर्णिमा की रात (पूर्णमासी) को मनाया जाता है। इसे दत्त जयंती के नाम से भी जाना जाता है। 2023 में, दत्त जयंती 26 दिसंबर, 2023 मंगलवार को पड़ेगी।
पूर्णिमा तिथि आरंभ- 26 दिसंबर 2023 सुबह 05:46 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 27 दिसंबर 2023 को सुबह 06:02 बजे
दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि ( Datta Jayanti ki puja vidhi )
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दत्तात्रेय जयंती का उत्सव दत्तात्रेय, भगवान ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के एक साथी रूप को याद करने के लिए मनाया जाता है। इस शुभ दिन पर, भक्त विशेष पूजा-अर्चना करके भगवान दत्तात्रेय की कृपा प्राप्त करते हैं। यहां दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि है:
1 सांध्योपासना:
इस उत्सव की शुरुआत सांध्योपासना के साथ करें। इसमें सूर्योदय और सूर्यास्त के समय में पूजन शामिल है।
2 पूजा स्थल:
एक साफ़ और शुद्ध स्थान को चुनें जहां आप पूजा कर सकते हैं। एक आसन पर बैठें और मातृगण का आवाहन करें।
3 कलश स्थापना:
एक कलश में जल भरकर उसे पूजा स्थल पर स्थापित करें।
4 दत्तात्रेय मूर्ति पूजा:
दत्तात्रेय की मूर्ति को पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य सहित पूजें। मंत्रों के साथ उन्हें आराधना करें।
5 पथ यात्रा:
दत्तात्रेय की पूजा के बाद, भक्त उनके पथ यात्रा के लिए निकल सकते हैं। इसमें भगवान के चरणों में प्रणाम करना शामिल है।
6 व्रत और आराधना:
दत्तात्रेय जयंती के दिन, व्रत रखें और विशेष रूप से दत्तात्रेय मंत्रों का जाप करें।
7 भजन और कीर्तन:
भक्ति भजन और कीर्तन के माध्यम से भगवान की महिमा का गाना करें।
8 प्रसाद वितरण:
दत्तात्रेय की पूजा के बाद, प्रसाद को वितरित करें और आपस में बाँटें।
9 सत्संग:
इस अवसर पर सत्संग में भाग लें और भगवान की कथाएं सुनें।
10 आरती:
अंत में, दत्तात्रेय की आरती गाएं और उनकी कृपा का आभास करें।
इस पूजा विधि को अनुसरण करके भक्त दत्तात्रेय जयंती के अद्भुत मौके पर भगवान की आराधना कर सकते हैं।
FAQ-(सामान्य प्रश्न)
दत्तात्रेय जयंतीला काय करावे?
दत्ताचा जन्म कधी झाला?
दत्तात्रेय कोणता दिवस आहे?
दत्तात्रेयांचा जन्म कुठे झाला?
दत्तात्रेय जयंती क्यों मनाई जाती है?
दत्तात्रेय की पूजा कैसे की जाती है?
दत्तात्रेय जयंती पर हमें क्या करना चाहिए?
दत्तात्रेय की कहानी क्या है?
Radhe Radhe ❤️🙏